Sunday 8 April 2012

Hindi Geet And Kavita's



बहुत दिन हुए वो तूफ़ान नही आया,
उस हसीं दोस्त का कोई पैगाम नही आया,
सोचा में ही कलाम लिख देता हूँ,
उसे अपना हाल- ए- दिल तमाम लिख देता हूँ,
ज़माना हुआ मुस्कुराए हुए,
आपका हाल सुने... अपना हाल सुनाए हुए,
आज आपकी याद आई तो सोचा आवाज़ दे दूं,
अपने दोस्त की सलामती की कुछ ख़बर तो ले लूं
खुशी भी दोस्तो से है,
गम भी दोस्तो से है,

तकरार भी दोस्तो से है,
प्यार भी दोस्तो से है,

रुठना भी दोस्तो से है,
मनाना भी दोस्तो से है,

बात भी दोस्तो से है,
मिसाल भी दोस्तो से है,

नशा भी दोस्तो से है,
शाम भी दोस्तो से है,

जिन्दगी की शुरुआत भी दोस्तो से है,
जिन्दगी मे मुलाकात भी दोस्तो से है,

मौहब्बत भी दोस्तो से है,
इनायत भी दोस्तो से है,

काम भी दोस्तो से है,
नाम भी दोस्तो से है,

ख्याल भी दोस्तो से है,
अरमान भी दोस्तो से है,

ख्वाब भी दोस्तो से है,
माहौल भी दोस्तो से है,

यादे भी दोस्तो से है,
मुलाकाते भी दोस्तो से है,

सपने भी दोस्तो से है,
अपने भी दोस्तो से है,

या यूं कहो यारो,
अपनी तो दुनिया ही दोस्तो से ..






तुम मेरे आस पास...

तुम मेरे आस पास, नही हो,

तुम कही नही हो.

फिर भी तुम्हारी खुश्बू,

हवओ मे घुली जा रही है.

हवा चलती है जैसे के

तुम कुछ कहे जा रही हो

तुम सामने नही हो,

मगर आँखे तुम्हे ही देखे जा रही है.

ये कसा जुनून है,

ये कसी जादूगरी है

के मैं जानता हूं,

कि ना तुम मेरी हो,

ना मै तुम्हारा

फिर भी आती जाती साँसे

तुम्हारे नाम कि लगती है.

तुम्हे पता हो शायद,

के मै तुम पर इख्तियारि समझता हूं.

तुम्हारी मुझे खबर नही मगर,

तुम अपनी दुनिया मे शायद,

गुम या भूल गयी होगी मुझे,

मेरी तनहाइया भी

तुम्हारे वजूद का एहसास दिला जाती है.

तुम कहाँ हो,

किस जहां मे हो,

जहां भी हो,

कहती है धड़कन तुम मेरी हो,

मेरे साथ हो, मेरे पास हो.

जबकि मैं जानता हूं, तुम नही हो, तुम कही नही हो.






बहुत मुश्किलो के बाद ...

बहुत मुश्किलो के बाद,
अब जाकर कही पाया है तुझे...

कितने इम्तिहानो के बाद,
अब जाकर कही तेरे जैसा साथी मिला है मुझे...

कितने झोके आए,
कितने झोके गये,
पर एक पल के लिए भी,
एक दूजे का हाथ ये,
हालात छूटा नही पाए...

अब मत जुड़ा होना मुझसे कभी,
कही तक कर हार ना जाए,
तेरा ये आशिक़ कभी...

पहले ही बहुत बार सता चुकी हो तुम,
मुझसे दूर जाकर बहुत तडपा चुकी हो तुम,
अब ना जाना मुझसे दूर कभी,
ए हमनशीं ये दिल,
और जुदाई से नही पाएगा...

माना जुदाई के बाद मिलन का,
सुकून ही कुछ और होता है,
मगर वो दो पल की जुदाई,
भी मेरा दिल अब से नही पाएगा...

तुझसे जुड़ा होते ही अब,
तेरे आशिक़ का दूं टूट जाएगा...






तेरी आँखों मे ...

तेरी आँखों मे मेरे ख्वाब नज़र आते हैं, जब भी मैं कुछ कहूँ तो बस तेरे ही अल्फाज़ नज़र आते हैं,
ये कोई तिलिस्म है या बस हमारे रिश्ता,
की मेरी हर धड़कन मे तेरे ही साज नज़र आते हैं,
तुझसे मैं हूँ या मुझमे हो तुम बसी,
मेरी साँसों से जुड़े तेरे दिल के तार नज़र आते है,
जब भी ये आँसू मेरी आँखों को सताते हैं,
तेरे आँचल की ठंढक से मेरी मुस्कान नज़र आते है,
तुम्हे मैं माँ कहूँ या बस एक ठंडी हवा,
की मेरे सारे दर्द तेरी पनाह मे घुल जाते हैं,
तेरी आँखों मे मेरे ख्वाब नज़र आते हैं...............................






शहर की इस दौड़ में...

शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है दोस्तों तो फ़िर मरना क्या है?

पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है
भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है?

सीरियल्स् के किर्दारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुर्सत कहाँ है?

अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यूं नहीं?
108 हैं चैनल् फ़िर दिल बहलते क्यूं नहीं?

इन्टरनैट से दुनिया के तो टच में हैं,
लेकिन पडोस में कौन रहता है जानते तक नहीं.

मोबाइल, लैन्डलाइन सब की भरमार है,
लेकिन जिग्ररी दोस्त तक पहुँचे ऐसे तार कहाँ हैं?

कब डूबते हुए सुरज को देखा त, याद है?
कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है?

तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़् के करना क्या है
जब् यही जीना है तो फ़िर मरना क्या है !!!






कतरा कतरा आंसू - Katra Katra Aansoo

कतरा कतरा आंसू - Katra Katra Aansoo


कतरा कतरा आंसू बहेते रहे,
और हम उन्हे सूखा ना पाए,
इस से बड़ी वफ़ा की मिशाल क्या होगी,
वो रोए हमसे लिपटकर किसी और के लिए,
और हम मना भी ना कर पाए.......


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जान से भी ज़्यादा उन्हे प्यार किया करते थे,
याद उन्हे दिन रात किया करते थे,
अब उन राहो से गुज़रा नही जाता,
जहां बैठ कर उनका इंतेज़ार किया करते थे.!


अंधेरों में चमकता - Andhero mein Chamakta

अंधेरों में चमकता - Andhero mein Chamakta




अंधेरों में चमकता जो सितारा ढूँढ लेते हैं
गमों में भी वो खुशियों का सहारा ढूँढ लेते हैं

कि जिनके दिल में है हरदम जुनूं हाँ जीतने का बस
वो हर तूफान में अपना किनारा ढूँढ लेते हैं

पता हमने कभी ना आँसुओं को भी दिया अपना
न जाने फिर वो कैसे घर हमारा ढूँढ लेते हैं

ये उनकी बादशाहत है या समझूँ मैं हकीकत ही
कि खुद में ही खुदा का वो नज़ारा ढूँढ लेते हैं

मेरी जो मुस्कुराहट गुम हुई तो मिल नहीं पाई
चलो आओ जरा उसको दुबारा ढूँढ लेते हैं

हमें अब पड़ गई आदत है अद्भुत फाकामस्ती की
हमारा क्या, कहीं भी हम, गुजारा ढूँढ लेते हैं......




उस को मेरा हल्का सा - Usko mera Halka Sa

उस को मेरा हल्का सा - Usko mera Halka Sa


उस को मेरा हल्का सा एहसास तो है
बे-दर्द सही वो मेरी हमराज़ तो है.........


वो आए ना आए मेरे पास लेकिन
शिद्दत से मुझे उसका इंतेज़ार तो है.........


अभी नहीं तो क्या हुआ मिल ही जाएगी कभी
मेरे दिल में उस से मिलन की आस तो है.......


प्यार की गवाही मेरे आँसुओं से ना माँग
बरसती नहीं आँखें मगर दिल उदास तो है........






कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन


बचपन आए ना वापस जाके,निवेदन मत पिता से है एक,
अपने लिए बच्चो का बचपन
ना च्हिनो , फिर लौट के ना आएगा
हमने खोया है उनका तो ना लूटे.,
अपने लिए मत भेजो शाला मे
खेलने दो उन्हे पढ़ने के साथ
कोई पूछे तो मत सरमाओ
शाला का नाम बताने मे
चाहे छोटी ही भले ना हो शाला
कम नंबर आए तो दाँतो मत
क्लास मे हर कोई नंबर 1 नाही होता
हर कोई अंबानी नाही होता
बहोत से इंसान भी होते है
इंसान बन जाए मुस्कुराना
सीख जाए ,मुस्कान उनकी
सब गम पिघला देती है
ना लूटो बचपन बच्चो का
आज हम गाते है .कल वो ना गाए
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन






हम भी अगर क्रिकेटर होते

Hum bhi agar crickter hote
हम भी अगर क्रिकेटर होते




हम भी अगर क्रिकेटर होते नाम जंबो ,वॉल हमरे भी होते
दाम इन जैसे हम पर भी लगते
हम भी अगर क्रिकेटर होते
बोलियाँ हम पर भी लगते
माल्या , शारुख, अंबानी लड़ते
मूशकूराती प्रीति हमे खरीद ते
हम भी अगर क्रिकेटर होते
बांधते गले मे नामके इनके पत्ते
धूप मे नेहा नाचती हम खेलते
अंगो को नेहा के लोग देखते
छा के चौके ना कोई देखते
हम भी अगर क्रिकेटर होते
लोग नाच देखने है आते
करे क्या बंधना है जो पत्ता
देखे ना देखे डालना है जो पत्ता
हम भी अगर क्रिकेटर होते





होली के रंग

अनेक रंग है इस पर्व के, अनेक रंग समेटे है ये
त्योहार है ये रंगों का, अनेक रंग समेटे है ये

पर्व ये ऐसा जब रंग सारे खिलते है,
बैर और दुश्मनी के दंभ सारे धुलते हैं,
बहता है रंग जो चहुं ओर
मित्रता के संगत बनते हैं

पर्व ये ऐसा जब रंग सारे खिलते है,
प्रीत की रीत के परि‍णय बनते हैं,
होती है मादकता हर ओर
प्रेम के मधुर पग बढ़ते हैं

पर्व ये ऐसा जब रंग सारे खिलते हैं,
जीवन पे पसरी नीरसता मिटती है,
होती है प्रसन्नता सभी ओर
नयी उमंग में सब संग बढ़ते है

अनेक रंग है इस पर्व के, अनेक रंग समेटे है ये
त्योहार है ये रंगों का, अनेक रंग समेटे है ये






मुझे गम नहीँ...

मुझे गम नहीँ जो नींद ना मयस्सर हो

मेरे मौला मुझे ख्वाबों से रिहा कर दे
हक़ीक़त और तसवउर के दरमीयाँ घुटन सी है
जिसे पाने की हसरत हो उसे नज़र से निहान कर दे

इतना कंज़रफ़ ओ मगरूर हूँ की कह नही सकता
मुझे आगोश मे भर ज़िंदगी की ईशा कर दे
तेरी कायनात में पाने खोने का दस्तूर है
मुट्ठी में बंद तक़दीर को मेरी , हवा कर दे

जो कह ना सका यक़ीनन तू समझ जाएगा
मेरी इल्टीजा मान अपना फरमान बयान कर दे
हर गुज़रता लम्हा मेरे होश ले रहा है
ठहरे हुए एहसास हैं उन्हे रवान कर दे






ज़िंदगी है

मर्ज़ लाइलाज़ है तो चारा गर करेगा क्या
हम भटकना चाहेंगे तो राहबर करेगा क्या
ज़िंदगी है साँस भर उम्र भर की मौत है
साँस भर न जी सका उम्र भर करेगा क्या
जिसको ढूंढता हुआ दर-ब-दर फिरा है तू
वो बना है अजनबी, ढूंढकर करेगा क्या
आजतक झुका नहीं जो किसीके सामने,
सजदा तेरा ना करे, तो वो सर करेगा क्या
बुत बना रहे कोई, और कोई रहे ख़फा,
ये सफ़र का हाल है, हमसफ़र करेगा क्या
मौत जब क़रीब हो, ज़िंदगी र क़ीब हो,
और द वा बने ज़हर, तो ज़हर करेगा क्या
ख़ुद खुदा से पूछ ले 'रूह' ये तेरा जुनून
उस खुदा के दिल पे भी कुछ असर करेगा क्या




बगिया

आसमान में उड़ना चाहा, पंखों में कुछ तीर चुभे है

अधरो ने गाना तो चाहा, पर मन में ही गीत दबे हैं
खिलखिलके हसना तो चाहा, मुसका नोपर लगे हैं ताले
काँटों की राहों पर चलकर इन पैरों में पड़े हैं छा ले
आशाओं के वंदनवार से मन का द्वार सजाना चाहा
अपने लहू से सिँचके हमने ये गुलज़ार सजाना चाहा
हर आशा को चोट लगी है, और कलियों को ज़ख़्म मिले हैं
हाल न पूछो इस बगिया का, फूल के बदले शूल खिले हैं
चाहा कुछ था पाया कुछ है, किस्मत ने कुछ यूँ लूटा है,
पता नहीं कब हाथ से अपने ख़ुशियों का दामन छूटा है




कैसे खिलेगा फूल

कैसे खिलेगा फूल वो टूटा जो शाख से

मिल जाएगा वो ख़ाक में आया है ख़ाक से
रंगीन हैं फ़िजाएँ तुम्हारे विसाल से
गमगीन हैं फ़िजाएँ ख़याल-ए-फ़िराक से
मर्ज़ी तेरी है तू कभी आए के न आए
आवाज़ दी है हमने तो उठउठके ख़ाक से
हैरत से न यूँ देख हमें ग़ैर नज़र से
महफ़िल में तेरी आए हैं हम इत्तेफ़ाक से
नादान है ये जान भी दे देगा इश्क़ में
इस दिल को कभी यूँ न सताओ मज़ाक से
ए रूह उसकी बेरूख़ी ने जान से मारा
हम तो गए थे मिलने बड़े इश्तियाक से




भूले ही नहीं...

भूले ही नहीं आपको तो याद करें कैसे

ख्वाबों के नशेमन को यूँ बर्बाद करें कैसे
अक्सर तो ख़यालों में मिला करते हैं तुमसे
मिलकर भी जुदा रहने की फ़रियाद करें कैसे
ये दर्द की सौगाते तो नेमत हैं खुदा की
इस दर्द से दिल को कोई आज़ाद करें कैसे
नाशाद जो हुआ है सनम तुमसे बिछड़के
कुछ ये तो कहो दिल का जहाँ शाद करें कैसे
ए 'रूह' ख़ुद ही डू बे हैं हम ग़म के भंवर में
उनकी उदास रातों को आबाद करें कैसे






इंतज़ार है उस शाम का

चाहत है उस शाम की
जब हो सिर्फ़ हो हम और तुम
हाथों में हाथ लिए
एक दूसरे में हो जाए गुम
मदमस्त करता हवा का झोका
और नीले झील का किनारा
चंदा संग चँदनी की किरने
बन जाए हम एक दूसरे का सहारा
होठों से कुछ ना कह कर भी
नज़रों ही नज़रों में सब कहना
दिल की राहों पर चलते हुए
मन ही मन मुस्कुराते रहना
सिर्फ़ कल्पना से ही बस
धड़कने हो जाती है तेज़
अब मुझे इंतज़ार है उस शाम का
सजेगी तेरे मेरे अरमानो की सेज .






Lajili Raat

  



मन मछेरा हो गया

तुम हृदय के द्वार पर आए
उजेरा हो गया

आँसुओं ने एक लिख डाली कथा
थी छिपी जिसमें घरौंदे की व्यथा
किंतु तिनके बीन तुम लाए
बसेरा हो गया

इस जगत ने झूठ ही हमको दिया
हमने तेरी आँख से सच को पिया
अब निशा का तम भले छाए
सवेरा हो गया

तुम हृदय सागर तलक जाओ ज़रा
सीप के मोती उठा लाओ ज़रा
मन हमारा मीन बिन पाए
मछेरा हो गया

चल रहा हर पाँव तपती रेत पर
क्यों न सुस्ता लें ज़रा-सा खेत पर
रास्ते को क्या कहा जाए
लुटेरा हो गया



जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है,...

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है,
ना मा, बाप, बहन, ना यहा कोई भाई है.
हर लडकी का है Boy Friend, हर लडके ने Girl Friend पायी है,
चंद दिनो के है ये रिश्ते, फिर वही रुसवायी है.


घर जाना Home Sickness कहलाता है,
पर Girl Friend से मिलने को टाईम रोज मिल जाता है.
दो दिन से नही पुछा मां की तबीयत का हाल,
Girl Friend से पल-पल की खबर पायी है,
जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है…..


कभी खुली हवा मे घुमते थे,
अब AC की आदत लगायी है.
धुप हमसे सहन नही होती,
हर कोई देता यही दुहाई है.


मेहनत के काम हम करते नही,
इसीलिये Gym जाने की नौबत आयी है.
McDonalds, PizaaHut जाने लगे,
दाल-रोटी तो मुश्कील से खायी है.
जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है…..


Work Relation हमने बडाये,
पर दोस्तो की संख्या घटायी है.
Professional ने की है तरक्की,
Social ने मुंह की खायी






मंगल भवन अमंगल हारी,
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि ।

होवहि वही जो राम रचि राखा,
को करि तरक बढावहिं साखा ।

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं ,
नाथ पुरान निगम अस कहहीं ।

जहां सुमति तहां सम्पत्ति नाना,।
जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना ।


कबीर की साखियाँ

निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय.
बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय..


कस्तुरी कुँडली बसै, मृग ढ़ुढ़े बब माहिँ.
ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ..


प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय.
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देई लै जाय ..


पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया ना कोय.
ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय..


माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया शरीर.
आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर ..


माला फेरत जुग गाया, मिटा ना मन का फेर.
कर का मन का छाड़ि, के मन का मनका फेर..


झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद.
खलक चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद..


वृक्ष कबहुँ नहि फल भखे, नदी न संचै नीर.
परमारथ के कारण, साधु धरा शरीर..


साधु बड़े परमारथी, धन जो बरसै आय.
तपन बुझावे और की, अपनो पारस लाय..


सोना सज्जन साधु जन, टुटी जुड़ै सौ बार.
दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एके धकै दरार..


मूरख संग ना कीजिए, लोहा जल ना तिराइ.
कदली, सीप, भुजंग-मुख, एक बूंद तिहँ भाइ..


तिनका कबहुँ ना निन्दिए, जो पायन तले होय.
कबहुँ उड़न आखन परै, पीर घनेरी होय..


बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि.
हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि..

ऐसी बानी बोलिए,मन का आपा खोय.
औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय..


लघता ते प्रभुता मिले, प्रभुत ते प्रभु दूरी.
चिट्टी लै सक्कर चली, हाथी के सिर धूरी..


मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं.
मुकताहल मुकता चुगै, अब उड़ि अनत ना जाहिं..


जिहिं धरि साध न पूजिए, हरि की सेवा नाहिं.
ते घर मरघट सारखे, भूत बसै तिन माहिं..


तुफानो को नींद..

तुफाने आती है तो क्या लहरे
क्या माझी,कोई नही टिकता
सब पल भर में खाँख मे मिल जाता
चारो तरफ श्मशान सा माहोल बन जाता
तुफानो को नींद नही आती।।

पछियों, गिध्दो का बादल पर छा जाना
विरान सा बंजर जिन्दगी का होना
कोई तो तुफान से पूछे तुझे नींद क्यो नहीं आती
थम क्यो नहीं जाती इसकी शरारतें,
तुफानो को नींद नहीं आती ।।

क्यो बेचैंन होती हैं ,लोगों का अमन चैंन छीनने को
क्यो बरबाद करती हैं तू , तुझमें थोडी भी दया नही
क्यो पूरे हरियाली को पल भर में रेगिस्तान कर देती हैं तू
दया कर हम पर ओैर सो जा ,अब मत सता तू
तुफानो को नींद नहीं आती ।।


अहा! बसंत तुम...

अहा! बसंत तुम आए।
तरु-पादप पतवार सहित
वन-उपवन नवरंग पाए।
अहा! बसंत तुम आए।

उत्तर फागुन वन पतझड़ था
अन्तर्मन एक व्यथा लहर था
हलाँकि प्रियतम दुर नही थे
शायद चैती हवा असर था
सहसा सब कुछ बदल गया
मन मौन तोड़ मुसकाए
अहा! बसंत तुम आए।

सज गई सुहानी हरियाली
कोमल किसलय फुनगी लाली
फूल पंखुरियाँ सतरंगी उड़े
कभी इस डाली कभी उस डाली
ये रंग सभी सुगंध भरे
मधुकंठिनी छुप-छुप गाए
अहा! बसंत तुम आए।

कुछ ऐसी अल्हड़ हवा चली
लेती अंगड़ाई कली-कली
लघु पहन बसंती परिधान
युवती इत्तराई बन तितली
इन कंचन कामिनी फूल पे
प्रेमी मन भंवरा मंडराए
अहा! बसंत तुम आए।

रस रंग भाव मधु उमंग हिये
जग मदमत्त जैसे भंग पीये
ऐ,रितुराज कहाँ से तुमने
इतने गंध-सुगंध लिए
कुछ ओर भी है अदृश्य जरुर
रहि-रहि मन को उकसाए
अहा! बसंत तुम आए।




मंजिल आसान नहीं...

मंजिल आसान नहीं हैं राही
बस चलते रहो , बस चलते रहो
तय कर लो राही तुम्हें जाना किधर हैं ।।

तुम अपना कर्म करते रहो - करते रहो
राही तुम चलते रहो चाहे तुफान आये,
या मुसीबत की घडी. या तकदीर का खेला ।।

धूप हो या छाव, हो चाहे बाधा
राही तुम अपनी मंजिल से डगमगाना नहीं
राही तुम बस चलते रहो- बस चलते रहो ।।

कभी इस डगर तो कभी उस डगर
कभी इस शहर तो कभी उस नगर
धावक बनकर बस मंजिल की तलाश में
राही तुम बस चलते रहो- बस चलते रहो ।।


रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ...

जिन्द‌गी मॆ है कित‌नॆ प‌ल‌
जीव‌न‌ र‌हॆ या न‌ र‌हॆ क‌ल
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

ब‌न्द क‌र दॆख‌ना भ‌विष्य‌फ‌ल
छॊड‌ चिन्ता क‌ल‌ की
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

ह‌र‌ प‌ल‌ है मूल्य‌वान
है तू भाग्य‌वान
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

दिल‌ कि ध‌क‌ ध‌क
दॆती है तुम्हॆ यॆ ह‌क
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

ह‌र‌ घ‌डी मॆ है म‌स्ती
दॆखॊ है यॆ कित‌नी स‌स्ती
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

क‌म क‌र अप‌नी व्य‌स्त‌ता
जीनॆ का निकालॊ स‌ही र‌स्ता
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

प‌ल‌ प‌ल‌ मॆ जीना सीखॊ
चॆह‌रॆ प‌र लाक‌र‌ मुस्कान
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

काम‌ न‌ही हॊगा क‌भी ख‌त्म
उस‌मॆ सॆ ही निकालॊ व‌क्त
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

दुश्म‌नी मॆ न‌ क‌रॊ स‌म‌य ब‌र‌बाद
दॊस्तॊ सॆ क‌र‌ लॊ अप‌नी दुनिया आबाद
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

क‌र‌ ग‌रीबॊ का भ‌ला
पाऒ मन‌ का स‌कून
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

ख्वाबॊ सॆ बाह‌र‌ निक‌ल
रंग बिरंगी दुनिया दॆखॊ
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

क‌म‌ क‌र‌ अप‌नी चाहत‌
ब‌न‌ क‌र दूस‌रॊ का स‌हारा
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

बांट कर दुख‌ द‌र्द स‌ब‌का
भुला क‌र‌ अप‌ना प‌राया
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

जीव‌न कॊ ना तौल पैसॊ सॆ
यॆ तॊ है अन‌मॊल
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

सुख‌ और दुख कॊ प‌ह‌चान‌
है यॆ जीव‌न‌ का र‌स
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

ईश्व‌र‌ नॆ ब‌नाया स‌ब‌कॊ ऎक‌ है
तू भी ब‌न‌क‌र‌ नॆक
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

अप‌नॆ साथ‌ दूस‌रॊ कॆ आँसू पॊछ
पीक‌र ग‌म प‌राया
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

खुश र‌ह‌क‌र बांटॊ खुशियां
मुस्कुरातॆ हुऎ बिखॆरॊ फूलॊं की क‌लियां
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ 

बांध लॆ तू यॆ गाँठ
स‌म‌झ लॆ मॆरी बात
प‌ढ क‌र‌ मॆरी क‌विता बार‌ बार‌
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ




अच्छा लगता है...

एक दर्द जो अच्छा लगता है।
क्या मर्ज़ है अच्छा लगता है।

कभी सामना उससे होती है
ये दिल रह जाता है धक!से
ये प्यार है,भय है या कोई
ये अर्ज़ है अच्छा लगता है।।

भीड़ भरी इस दुनिया में
इसने उसको हीं क्यों देखा
किसी पिछले जनम का नाता है
या कर्ज़ है अच्छा लगता है।।

ये खुद को प्रेमी कहता है
मुझको इतिहास पढाता है
किस-किस मजनूँ का नाम कहाँ
पे दर्ज़ है अच्छा लगता है।।

कभी उसने मुड़कर नही देखा
मुझको क्या पीड़ा होती है
ये कुक्कुड़ का दुम कहता है
क्या हर्ज़ है अच्छा लगता है।।

वो भले हीं इसको ना देखे
हर अदा का रस ये लेता है
कहता है मंडराना,जलना
तो फ़र्ज़ है अच्छा लगता है।।

नन्दन कितना समझाया भी
कुछ मेरी तड़प भी समझाकर
अपने हीं मन की सुनता है
खुदगर्ज़ है अच्छा लगता है।।

एक दर्द जो अच्छा लगता है
क्या मर्ज़ है अच्छा लगता है




झाँसी की रानी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
( झाँसी की रानी- सुभद्रा कुमारी चौहान )




मानुस हौं तो वही रसखान ...

मानुस हौं तो वही रसखान ... 


मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन,
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन.

पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन,
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन.

या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं,
आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं.

रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं,
कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं.

सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै,
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं.

नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं,
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं.

धुरि भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी,
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनी बाजति, पीरी कछोटी.

वा छबि को रसखान बिलोकत, वारत काम कला निधि कोटी,
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों लै गयो माखन रोटी.

कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै,
माहिनि तानन सों रसखान, अटा चड़ि गोधन गैहै पै गैहै.

टेरी कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै,
माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै.

मोरपखा मुरली बनमाल, लख्यौ हिय मै हियरा उमह्यो री,
ता दिन तें इन बैरिन कों, कहि कौन न बोलकुबोल सह्यो री.

अब तौ रसखान सनेह लग्यौ, कौउ एक कह्यो कोउ लाख कह्यो री,
और सो रंग रह्यो न रह्यो, इक रंग रंगीले सो रंग रह्यो री.


( रसखान )



मोको कहाँ ढूंढ़ं बन्दे...

मोको कहाँ ढूंढ़ं बन्दे मैं तो तेरे पास में।

ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।

ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में।

ना मैं जप मे ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपवास में।

ना मैं क्रियाकर्म में रहता, ना ही योग सन्यास में।

नहिं प्राण में नहिं पिण्ड में, ना ब्रह्मांड आकाश में।

ना मैं भृकुटी भंवर गुफा में, सब श्वासन की श्वास में।

खीजी होय तुरत मिल जा इस पल की तलाश में।

कहैं कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूं विश्वास में ।




(कबीर)





कॉलेज में अजीब-अजीब खेल होता है...

कॉलेज में अजीब-अजीब खेल होता है
पढ़ाई के बहने दो दिलों का मेल जोल होता है
इसीलिए तो भैया पप्पू हर साल फेल होता है


हक़ीक़त पहचान लेना

हक़ीक़त पहचान लेना
बिछड़ जाने से पहले,
मेरी सुन लेना
अपनी सुनने से पहले,
बहुत रोई है ये आँखें
आपके दूर जाने से पहले

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प्यार कमज़ोर दिल से किया नही जा सकता,...

प्यार कमज़ोर दिल से किया नही जा सकता,

ज़हर दुश्मंन से लिया नही जा सकता,

दिल में बसी है उल्फ़त जिस प्यार की

उस के बिना जिया नही जा सकता.

साथ रहते रहते यू हीं वक़्त गुज़र जाएगा

दूर होने के बाद कौन किसे याद आएगा

जी लो ये पल जब हम साथ है

कल का क्या पता, वक़्त कहाँ ले जाएगा


मोहब्बत और आशिकी मे हैं मजबूरियाँ हज़ार,...

मोहब्बत और आशिकी मे हैं मजबूरियाँ हज़ार,मोहब्बत तो हो जैसे कोई मजबूरी का बाज़ार,मोहब्बत की चाह वाले मजबूरी ख़रीदा करते हैंअपने ही अमन चैन से दूरी ख़रीदा करते हैं


अचानक मोहब्बत कर बैठे हूँ,...

अचानक मोहब्बत कर बैठे हूँ,

क्या पता था अंधेरो मे कही खो जाएँगे...

भुला बैठे थे अपनो को ही हम

क्या पता था आख़िर लौट कर उन के पास ही आएँगे...


भले ही टूटे मेरा दिल,तुमसे प्यार आज भी है ...

भले ही टूटे मेरा दिल,तुमसे प्यार आज भी हैतेरे लिए मेरे दिल में, वो बहार आज भी हैजिस राह चल दिए तुम मेरा साथ छोड़ कर,उसी राह में तेरे आशिक़ की मज़ार आज भी है


हर ख़ुशी तेरी तरफ़ मोड़ दूं ...

हर ख़ुशी तेरी तरफ़ मोड़ दूं तेरे लिए चाँद तारे तक तोड़ दूं 



ख़ुशिओ के दरवाज़े तेरे लिए खोल दूं 



इतना काफ़ी है या 2 - 4 झूठ और बोल दूँ





हुई शाम उन का ख़याल आ गया

हुई शाम उन का ख़याल आ गया
वही ज़िंदगी का सवाल आ गया

अभी तक तो होंठों पे था तबस्सुम का एक सिलसिला
बहुत शादमां थे हम उनको भुलाकर
अचानक ये क्या हो गया
कि चेहरे पे रंग-ए-मलाल आ गया ...

हमें तो यही था गुरूर गम-ए-यार है हम से दूर
वही ग़म जिसे हमने किस-किस जतन से
निकाला था इस दिल से दूर
वो चलकर क़यामात की चाल आ गया ...





तेरी आँखें अब होगी ना कभी नम

तेरी आँखें अब होगी ना कभी नमतू जो देख ले तो भुला दे में सारे ग़मतू जो चाहे जो बदलेगा मौसमयह जो पल हैं इन्हे ख़ुशियो से भर लो तुमवो बितें दिन उन्हे याद फिर से कर लो तुमतू जो चाहे जो बदले गा मौसमए दिल तो रोना नहीयह ख्वाब अधूरे नहीयह अरमान सारे तेरेहोंगे पूरे कभीइक दिन आएगा तू यूँ गाएगा लालालालाइक दिन आएगा तू यूँ गाएगा लालालाला





आराम करो

एक मित्र मिलेबोले, "लालातुम किस चक्की का खाते हो?इस डेढ़ छँटाक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो।
क्या रक्खा है माँस बढ़ाने मेंमनहूसअक्ल से काम करो।
संक्रान्ति-काल की बेला हैमर मिटोजगत में नाम करो।"हम बोले, "रहने दो लेक्चरपुरुषों को मत बदनाम करो।
इस दौड़-धूप में क्या रक्खाआराम करोआराम करो।
आराम ज़िन्दगी की कुंजीइससे  तपेदिक होती है।
आराम सुधा की एक बूंदतन का दुबलापन खोती है।
आराम शब्द में 'रामछिपा जो भव-बंधन को खोता है।
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है।
इसलिए तुम्हें समझाता हूँमेरे अनुभव से काम करो।
ये जीवनयौवन क्षणभंगुरआराम करोआराम करो।
यदि करना ही कुछ पड़ जाए तो अधिक  तुम उत्पात करो।
अपने घर में बैठे-बैठे बस लंबी-लंबी बात करो।
करने-धरने में क्या रक्खा जो रक्खा बात बनाने में।
जो ओठ हिलाने में रस हैवह कभी  हाथ हिलाने में।
तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ -- है मज़ा मूर्ख कहलाने में।
जीवन-जागृति में क्या रक्खा जो रक्खा है सो जाने में।
मैं यही सोचकर पास अक्ल केकम ही जाया करता हूँ।
जो बुद्धिमान जन होते हैंउनसे कतराया करता हूँ।
दीए जलने के पहले ही घर में  जाया करता हूँ।
जो मिलता हैखा लेता हूँचुपके सो जाया करता हूँ।
मेरी गीता में लिखा हुआ -- सच्चे योगी जो होते हैं,वे कम-से-कम बारह घंटे तो बेफ़िक्री से सोते हैं।
अदवायन खिंची खाट में जो पड़ते ही आनंद आता है।
वह सात स्वर्गअपवर्गमोक्ष से भी ऊँचा उठ जाता है।
जब 'सुख की नींदकढ़ा तकियाइस सर के नीचे आता है,तो सच कहता हूँ इस सर मेंइंजन जैसा लग जाता है।
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँबुद्धि भी फक-फक करती है।
भावों का रश हो जाता हैकविता सब उमड़ी पड़ती है।
मैं औरों की तो नहींबात पहले अपनी ही लेता हूँ।
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊँटों की उपमा देता हूँ।
मैं खटरागी हूँ मुझको तो खटिया में गीत फूटते हैं।
छत की कड़ियाँ गिनते-गिनते छंदों के बंध टूटते हैं।
मैं इसीलिए तो कहता हूँ मेरे अनुभव से काम करो।
यह खाट बिछा लो आँगन मेंलेटोबैठोआराम करो।








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